शुक्रवार दि. 16 सितंबर, 2022 को प्रातः 11.00 बजे सर परशुरामभाऊ महाविद्यालय के लेडी रमाबाई सभागार में बड़े उत्साह के साथ हिंदी दिवस समारोह मनाया गया।
समारोह का प्रारंभ छात्रा जैकलिन मिरांडा की सरस्वती वंदना से हुआ, जिसमें उसने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के गीत ‘वीणा वादिनी वर दे’ पर नृत्याविष्कार प्रस्तुत किया। इस नृत्याविष्कार के बाद प्रथम वर्ष साहित्य की हिंदी की छात्राओं ने डॉ. गोरख थोरात लिखित ‘राष्ट्रभाषा हिंदी: भारत की माथे की बिंदी’ नामक लघु-नाटक प्रस्तुत किया। इस लघु नाटक में विभिन्न भारतीय भाषाओं का आपसी झगड़ा और हिंदी के प्रति उनकी ईर्ष्या दिखाई गई, जिसे भारत माता नामक पात्र द्वारा सुलझाते हुए दिखाया गया।
मान्यवरों ने दर्शक-दीर्घा में बैठकर इस नाटक का आनंद लिया। इसके बाद सभी मान्यवर मंचासीन हुए। मान्यवरों में शि. प्र. मंडली के नियामक मंडल के सदस्य तथा सर परशुरामभाऊ महाविद्यालय विकास मंडल के अध्यक्ष श्री. अशोक वझे प्रमुख अतिथि तथा आकाशवाणी पुणे के पूर्व सह-निर्देशक डॉ. सुनील देवधर, प्रमुख वक्ता डॉ. प्रवीण रणसुरे, समारोह के अध्यक्ष प्राचार्य, डॉ. सुनील गायकवाड, उपप्राचार्य कला विभाग डॉ. विद्या अवचट तथा हिंदी विभाग प्रमुख डॉ. गोरख थोरात आदि मंचासीन हुए।
कार्यक्रम की प्रस्तावना तथा उपस्थितों का स्वागत विभाग प्रमुख डॉ. गोरख थोरात ने किया। इसके उपरांत हिंदी विभाग के छात्रों ने संक्षिप्त भाषण तथा कविताओं के जरिए हिंदी के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट कीं। इसके उपरांत प्रमुख अतिथि डॉ. सुनील देवधर का व्याख्यान हुआ।
अपने व्याख्यान में डॉ. देवधर ने हिंदी भाषा के राष्ट्रभाषा न बन पाने के लिए तत्कालीन राजनीति को उत्तरदायी माना। उनका कहना था कि राजभाषा को लेकर हमारे संविधान में बड़े पेंच की स्थिति है। इसलिए राष्ट्रभाषा बनने की हिंदी की राह बड़ी कठिन मुश्किल है। क्योंकि, संविधान के अनुसार, जब तक देश के सभी राज्यों की विधानसभाएँ एकमत होकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव पास नहीं करती, तब तक हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना असंभव है। आज भी यह राजनीति जा रही है। क्योंकि जैसे ही हमारे देश के गृहमंत्री सभी भाषाओं को एकजुट होकर हिंदी के सहयोग की बात करते हैं, तभी एक राज्य के मुख्यमंत्री उस पर आपत्ति जताते हैं।
प्रमुख वक्ता डॉ. प्रवीण रणसुरे ने सबसे पहले हिंदी की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी की। फिर मध्ययुगीन हिंदी साहित्य, संत साहित्य, इस्लाम तथा सूफी संप्रदाय के कुछ उदाहरण लेकर प्रेम और भक्ति के विषय में अपने विचार प्रकट किए। साथ ही अपनी शेरो-शायरी का प्रदर्शन करते हुए माहौल को शायराना बना दिया।
महाविद्यालय के विकास समिति के अध्यक्ष श्री. अशोक वझे ने प्रभु श्रीराम और छत्रपति शिवाजी महाराज हमारे आदर्श होने का उल्लेख किया। उन्होंने डॉ. सुनील देवधर की बात का समर्थन करते हुए इस बात के लिए अफसोस जताया कि हिंदी को उसका हक दिलाने में हम असफल रहे हैं। साथ ही ‘हिंदी दिवस’ के ऐसे आयोजनों के लिए प्रसन्नता जताते हुए हर पाठशाला, महाविद्यालय तथा सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं में ऐसे आयोजनों की आवश्यकता प्रतिपादित की।
महाविद्यालय की कला शाखा की उपप्राचार्य डॉ. विद्या अवचट ने ‘जेंडर बायस’ को लेकर अपने कुछ विचार व्यक्त किए। प्राचार्य डॉ. सुनील गायकवाड ने महाविद्यालय में ऐसे आयोजनों की आवश्यकता की सार्थकता पर बल देते हुए अन्य विभागों को भी हिंदी दिवस समारोह जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करने का परामर्श दिया। साथ ही, यह सलाह भी दी कि महाविद्यालय के सभी भाषा विभाग मिलकर कुछ विशाल आयोजन करे।
महाविद्यालय के कनिष्ठ विभाग के प्रा. शरद तांदले ने उपस्थितों के प्रति आभार प्रदर्शन किया और ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ गान के प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
इस समारोह में महाविद्यालय के करीब ढाई-सौ छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे। महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग प्रमुख डॉ. अशोक चासकर, गणित विभाग प्रमुख डॉ. विनायक सोलापूरकर, मराठी विभाग प्रमुख डॉ. कामिनी रणपिसे, राजनीति विज्ञान विभाग प्रमुख डॉ. संज्योत आपटे, संस्कृत विभाग प्रमुख डॉ. भारती बालटे, आई.क्यू.ए.सी. प्रमुख डॉ. मनोज देवणे, भौतिकशास्त्र विभाग के डॉ. शिवाजी भोसले, डॉ. गोविंद धुलगंडे आदि के साथ करीब तीस वरिष्ठ एवं कनिष्ठ महाविद्यालय के करीब पच्चीस प्राध्यापक उपस्थित थे।